Vijaya Ekadashi Kab hai: विजया एकादशी का व्रत अन्य सभी एकादशियों की तरह अत्यंत प्रभावशाली और समृद्धि प्रदायक होता है। इस व्रत के पालन से व्यक्ति को विजय प्राप्त होती है। आइए, हम जानते हैं कि विजया एकादशी कब है, इसका महत्व, पूजा विधि, और मुहूर्त।

Vijay Ekadashi 2024: हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व हैं। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है। कहते हैं इस व्रत को करने से भगवान विष्णु की आशीर्वाद मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है। आइए जानते हैं विजया एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा। जानें तारीख और महत्व।

विजया एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा
विजया एकादशी तिथि का आरंभ 6 मार्च को सुबह 6 बजकर 31 मिनट पर होगा और अगले दिन 7 मार्च को 4 बजकर 14 मिनट पर एकादशी तिथि समाप्त होगी। लेकिन, उदया काल से ही एकादशी तिथि 6 मार्च को पूरे दिन रहने वाली हैं। इसलिए विजया एकादशी का व्रत 6 मार्च को रखा जाएगा।

विजया एकादशी का महत्व
विजया एकादशी का महत्व फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी, जिसे विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है, अपने नाम के अनुसार ही एक अत्यंत प्रभावशाली व्रत है। इस व्रत के पालन से व्यक्ति को अपने शत्रुओं और प्रतिकूल परिस्थितियों पर विजय प्राप्त होती है। प्राचीन काल में, कई राजाओं और महाराजाओं ने इस व्रत के पालन से महत्वपूर्ण युद्धों में विजय हासिल की है। विजया एकादशी के व्रत के बारे में पुराणों में भी विस्तार से वर्णन मिलता है। कहा जाता है कि जब किसी व्यक्ति को अपने जीवन में विपत्ति और संघर्षों से घिरा हो, तो विजया एकादशी के व्रत के द्वारा वह विजय प्राप्त कर सकता है। इसे करने से कष्टों से मुक्ति मिलती है।


विजया एकादशी की कहानी

विजया दशमी की तरह, विजया एकादशी के बारे में भी एक प्रसिद्ध कथा है जो भगवान श्री राम से जुड़ी है। एक पुरानी मान्यता के अनुसार, द्वापर युग में पांडवों ने फाल्गुन एकादशी के महत्व के बारे में जानने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्होंने अपनी संदेह भगवान श्री कृष्ण के समक्ष रखी। भगवान श्री कृष्ण ने फाल्गुन एकादशी के महत्व और कथा के बारे में बताते हुए कहा, “हे पांडव! सबसे पहले नारद मुनि ने ब्रह्मा से फाल्गुन कृष्ण एकादशी व्रत की कथा और महत्व के बारे में जाना था, फिर तुम्हें प्राप्त हुआ।” यह कथा त्रेता युग की है, जब भगवान श्रीराम ने माता सीता के अपहरण के बाद सुग्रीव की सेना के साथ रावण के खिलाफ लंका की ओर प्रस्थान किया। लेकिन लंका पहुंचने से पहले, उनका रास्ता विशाल समुद्र ने रोक लिया। समुद्र में खतरनाक समुद्री जीव थे जो वानर सेना को हानि पहुंचा सकते थे। चूंकि श्री राम मानव रूप में थे, इसलिए वे इस समस्या को मानवीय तरीके से हल करना चाहते थे। उन्होंने लक्ष्मण से समुद्र पार करने का उपाय पूछा, तो लक्ष्मण ने कहा, “हे प्रभु! यहाँ से आधे योजना दूर वकदालभ्य मुनि निवास करते हैं, उनके पास समाधान हो सकता है।” भगवान श्री राम उनके पास गए, उन्हें प्रणाम किया और अपनी समस्या बताई। तब मुनि ने बताया कि फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सम्पूर्ण सेना के साथ उपवास करने से आप समुद्र पार कर सकेंगे और लंका पर विजय प्राप्त करेंगे। समय पर मुनि वकदालभ्य द्वारा दी गई विधि के अनुसार, भगवान श्रीराम सहित पूरी सेना ने एकादशी का उपवास किया और रामसेतु बनाकर लंका पर हमला किया। इस युद्ध में भगवान श्री राम एक साधारण मनुष्य के रूप में थे, लेकिन इस एकादशी के उपासना से उन्होंने रावण की बड़ी सेना को परास्त कर लंका पर विजय प्राप्त की और सीता माता को मुक्त किया।

विजया एकादशी पूजा विधि

–विजय एकादशी के एक दिन पहले एक शुद्ध स्थान बनाएं और उस पर सप्त अनाज रखें।
-विजया एकादशी के दिन सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठें इसके बाद पूजा का मंदिर अच्छे से स्वच्छ कर लें। फिर उसपर सप्त अनाज रखें।
– इसके बाद वहां पर चांदी, तांबे या मिट्टी का कलश स्थापित करें।
– इन सबके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति को स्थापित करें ।
– फिर धूप, दीप, चंदन, फल, फूल और तुलसी आदि से भगवान विष्णु की पूजा करें।
– व्रत रखने के साथ साथ विजया एकादशी व्रत की कथा का पाठ करें ।
– रात्रि के समय श्री हरि के नाम का जाप करते हुए जागरण करें ।
–‘विष्णु सहस्रनाम’ का पाठ का करना इस दिन अत्यधिक शुभ माना जाता है।

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